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पांचवां भाग : जीया कोष्ठक
४. लुब्धमर्थन गृह्णीयात्स्तब्ध मञ्जलिकर्मणा । मूर्ख छन्दानुरोधेन, याथायें न च पण्डितम् ।।
-चाणक्यनीति १२ लोभी को धन मे, अभिमानी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसका मनोरथ पूरा करके और पण्डित को सच-सच कह कर वश में करना चाहिए ।