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________________ १८ संसार का पागलपन १. आदित्यस्यगतागत' रहरहः संक्षीयत जीवित, व्यापार हुकार्यभारगुरुः कालो न विज्ञायते । दृष्ट्वा जन्म- जरा विपत्ति-मरणं त्रासच नोद्यत े, पीत्वा मोहमयी प्रमादमदिरा मुन्मत्तभूत जगत् ॥ - भर्तृहरि-राग्यशतक ७ सूर्य के उदय अस्त होने से दिन-दिन आयु घटती जा रही है । अनेक कार्यों के भार से बढ़े हुए व्यापारों में बीतता हुआ काल भी जाना नहीं जाता। जम-जरा-मण को देखकर वास नहीं होता अतः प्रतीत होता है कि मोहमया प्रमाद-मदिरा को पीकर जगत् मतवाला हो रहा है । झूठा साचा कर लिया, विष को अमृत जाना । दुख को सुख सब कोई कहै, ऐसा जगत दिवाना ॥ ३. दुनिया आंधली नथी, दीवानी छै । ४. रंगी की मांरगी वहे. पके दूध को वांया | चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया || ५. गाड़ी का नाम ऊंखली, चलती का नाम गाड़ी। १७१ -कबीर -गुजराती कहावत -कोर -हिंदी कहावत
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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