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________________ १७२ वक्तृत्वकला के बीज ६. भारत में एक करोड़ तीस लाख पागल हैं, एक हजार में २३ मानसिक रोगी हैं उनमें से १८ केस संगीन समझने चाहिए। (मानसिक रोग-चिकित्सालय के अधीक्षक डा० फैलाशचन्द्र दुवे) ७. काम क्रोध जल आरसी, शिशु त्रिया मद फाग, होत सबाने बावरे, आठ बात चित्त लाग | ८. दिल्ली में पागलों की मर्दुमशुमारी हो रही थी, एक व्यक्ति ने गणना के अधिकारी से कहा कि मेरा नाम पागलों में लिख लीजिये ! मुझे लोग पागल कहते हैं। बिस्मित अधिकारी ने पूछा- कैसे ? उसने कहा-एक दिन कई नौजवान लड़कियाँ अश्लील फिल्मी गीत गाती हुई बाजार में नंगे सिर जा रही थीं, उनमें एक लड़की मेरे मित्र की पुत्री थी। मैंने उसे बुलाकर कहा-बेटी ! ऐसे अश्लीलगीत गाते हुए बाजार में नंगे सिर घूमना अपने कुल को शोभा नहीं देता। लड़की ने कुछ शर्म महसूस की और चुपचाप चली गई । सहेलियों ने पूछा-यह बूढ़ा क्या कहता है ? उसने जबाब दियाकुछ नहीं, पागल है। यों ही बकवास करता है । एक दिन नवविवाहित पति-पत्नी हलवाई की दुकान पर खड़े-खड़े खा रहे थे, वे प्रेममुग्ध होकर एक-दूसरे के मुंह में चम्मच से कुछ डाल रहे थे | लड़का मेरे सम्बन्धी का
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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