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वक्तृत्वकला के बीज
करके अच्छे को स्वीकार करते हैं, किन्तु मूर्ख व्यक्ति दूसरों के विश्वास पर पलता है। कि कवेस्तस्य काव्येन, किंकाण्डेन धनुष्मता। परस्थ हृदये लगा, न धूर्णांत यांच्छरः ।।
-शाङ्ग पर क्या है उस कवि के काव्य से और क्या हैं उस धनुष्य-बाण से, जो हृदय में लगकर दूसरे का सिर न हिला सके । कविता समझने वालों की अपेक्षा करनेवाले ज्यादा हैं। एक अच्छा पद्य समझने की अपेक्षा एक रद्दी-सा पद्य लिखना आसान है।
११.
-माटेन