________________
पांचवा भाग सोसरा कोष्ठक
१४६
जो और जितने हेतु संसार के हैं, वे और उतने ही हेतु मोक्ष के हैं ।
६. मोक्षद्वारे द्वारपाला इचत्वारः परिकीर्त्तिताः ।
शमो विचारः संतोष वचतुर्थः साधुसंगमः ॥
- योगवाशिष्ठ २।१६।५८
मुक्तिमहल के चार द्वारपाल हैं- ( १ ) शान्ति, (२) सद्विचार, (३) सन्तोष, (४) साधुसंगति ।
७. मुक्तिमिच्छसि चेत् तात ! विषयान् विषवत् त्यज । क्षमार्जव दया-शौचं सत्यं पीयूषवत् पिब ||
J
- चाणक्यनीति है|१
यदि मुक्ति पाने की इच्छा है, तो विषयों को विषतुल्य रामभकर छोड़ो और क्षमा, सरलता, दया, पवित्रता एवं सत्य का अमृतवत् पान करो ।
¤