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मोक्षगामी कौन ? १. गाणस्म दंसरणस्स य, सम्मत्तस्स चरित्तजुत्तस्स । जो काही उवओगं, संसाराओ विमुचिहिति ॥
-आतुरप्रत्याख्यान २० जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र का उपयोग करेगा, वह मंसार से
छुटकारा पायेगा-मुक्त बनेगा । २. जंविच्चा निव्वुड़ा गे: निटू पावंति पंडिगा ।
-सूत्रकृतांग १५।११ जिन मग्मग ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना .र के अनेक महागम्प निर्वाण को प्राप्त हुए हैं, उन्हीं की आराधना द्वारा विद्वान
दिदि को प्राप्त करते हैं। ३. सयं वोच्छिंद काम-संचयं, कोसारकीडेव जहाइ बंधा।
-ऋषिभाषित जसे-रेनम का कीड़ा अपने बन्धनों को तोड़ता है, उसी प्रकार
आत्मा स्वयमेव कर्मबन्धनों को तो कर मत होती है । ४. निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या बिनिवृत्त कामाः। द्वन्द्व विमुक्ताः सुख-दुःखसंज-गच्छन्त्यमूढ़ा पद व्ययं ते ।।
गीता १५।५ वे नपुग्ष ही अव्यय पद-मोक्ष को प्राप्त होते है, जो मानमोह से रहित हैं, आसक्तिदोष को जोतोवाले हैं, सदा अध्यात्म