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________________ मोक्ष-स्थान अस्थि एगं धृवं हारगं, लोगगमि दुरारुहं । नत्थि जन्थ जरा-मन्नू, बाहिणो वेयरणा तहा ।। १ ।। निवारणति अवाहंति, सिद्धी लोगग्गमेव य । खेम सिवं अरगावाहं, जं चरति महेसिंगो ।। ३ ।। - उत्तराभ्ययन २३ लोक के अग्रभाग पर एक ऐसा दुरारोह-भ्र वस्थान है, जहाँ गरा, मृत्यु, व्याधि और वेदना नहीं है ।।८१|| वह स्थान निर्वाग, अध्यावाघ, सिद्धि, लोकाय, क्षेम, शिव और अनावाव नाम से विख्यात है । उसे महर्षि लोग प्राप्त करते २, तंटा साभयं वास, जं मुंपत्ता न सोयति । --उत्तराध्ययन २३।८४ वह मोक्षस्थान शाश्वत निवासवाला है, जिम पाकर आत्माए शौकहित हो जाती हैं। ३. अविच्छिन्न मुत्रं यत्र, स मोक्ष परिपत्यते। -शुभचन्द्राचार्य जहाँ शाश्वत सुख है, उसे मोक्ष वाहते हैं । ४. स मोक्षा योऽपुनर्भवः ! -भागवत जहाँ जाने के बाद फिर कभी जन्म नहीं होता, वह मोक्ष है । १४५
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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