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६. भोगेच्छा मात्र कोबन्ध - रतस्यागो मोक्ष उच्यते ।
कला के वीज
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- योगवशिष्ठ ४।३५।३
भोग की इच्छामात्र बन्ध है और उसका त्याग करना मोक्ष है । ७. प्रकृति त्रियोगो मोक्षः । -षड्दर्शन समुदय ४३ सांख्यदर्शन के अनुसार आत्मारूप पुरुषतत्व में प्रकृतिरूप पुरुषतत्त्व भौतिकतत्त्व का अलग होजाना मां है ।
कामानां हृदयोबासः संसार इति कीर्तितः । तेषां सर्वात्मना नाश मोक्ष उक्तो मनीषिभिः ।।
हृदय में कामादादि विषयों का होनर संसार है एवं उनका समूल नष्ट हो जाना मोक्ष है - इस प्रकार मनीपियों ने कहा है । ६. वित्तमेव हि संसारो, रागादिवलेशवासितम्। तदेव तंत्रनिर्मुक्तं भवान्त इति कथ्यते ॥
- बोख रागादि क्लेशयुक्त चित्त ही संसार है। वह यदि रामादिमुक्त हो जाय तो उसे भवान्त अर्थात् मोक्ष कहते हैं ।
१०. नाशाम्बरत्वे न सिताम्बरत्वे, न तर्कवादे न स तत्त्ववादे | न पक्षसेवाश्रयणेन मुक्ति, कषायमुक्तिः किलमुक्तिरव ॥ - हरिभद्रसूरि मुक्ति न तो दिगम्बरत्व में है, न स्वेताम्रत्व में, न तर्कवाद में है, न तत्त्ववाद में तथा न ही किसी एक पक्ष क सेवा करने में है । वास्तव में क्रोध आदि कपायों से मुक्त होना ही मुक्ति हैं।
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