SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७ ५. सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम् । अच्छी कविता -- म हरि-नीतिशतक २१ यदि श्रेष्ठ कविता है तो फिर राज्य में क्या है। २. सरसा सालङ्कारा, सुपदन्यासा सुवर्णमय मूर्तिः । आर्या तथैव भार्या, न लभ्यते पुण्यहोनेन ॥ - प्रसंग रस्नावली सरस, अलङ्कारसहित अर्थात् अच्छे वाक्य को सलानेवाली गुणसहित, अच्छे पदों की रचनावाली एवं अच्छे वर्णों-अक्षरोंवाली ऐसी आर्या (एक प्रकार की पद्यमय कविता ) और भार्या पुण्यहीन को नहीं मिलती । भार्या के पक्ष में अलंकार का अर्थ आभूषण है, सुपद का अर्थ अच्छे पग हैं और सुवर्णमभूर्ति का अर्थ सोने की-सी पुतली है। (यह यर्थ काव्य है ) | सा कविता सा वनिता यस्याः श्रवणेन दर्शनेनापि । कविहृदयं विहृदयं, सरलं तरलं च सत्त्वरं भवति ॥ वही कविता, कविता है, जिसे सुनने से कवियों का हृदय सरल हो जाये । वही वनिता, वनिता है, जिसको देखते ही मनुष्य का हृदय चंचल हो जाय | ४. सहज और सोधी हुवै, ऊंचा भाव यथेष्ट | रस बरसे मुख बोलतां वाही कविता श्रेष्ठ । 1 २४
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy