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________________ पेट १. पाँब दिये चलने-फिरने कहूँ , हाथ दिये हरिकृत्य करायो । कान दिये सुनिये प्रभु को यश . __नैन दिये तिन मार्ग दिखायो । नाक दियो मुख सोमन कारन , __जीभ दई प्रभु को गुगा गायो । सुन्दर साझ दियो परमेश्वर , पेट दियो कहा पाप लगायो । २. बड़े पेट के भरन को, है रहीम दुख बाढि । यात हाथी हिहर के, दिये दाँत है काढ़ि । ३. अस्य दग्धोदरस्यार्थे, कि न कुर्वन्ति मानवाः । वानरीमिव वाग्देवी, नर्त वन्ति गृहेन्गृहे 11 इस पापी पेट के लिए मनुष्य क्या नहीं करते । सरस्वतीदेवी को भी वे वानरी की तरह घर-घर नचा रहे हैं। ४. वाथन कला वोह तर, किता मुख होय कवीश्वर, मुत दासी नो सोय, न्याय-सुध हाय नरेश्वर । कायर ने सूरा कहै, कहै सुम ने दाता , नरां घणां री नार, कहै आ लिछमी माता ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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