________________
रात्रि भोजन से हानि १. मेधा पिपीलिका हन्ति, समा कुजिलोरमः !
कुरुते मक्षिका वान्ति, कुष्ठरोमं च कॉलिकः ।।५०।। कण्टको दारुखण्डं च, वितनोति गलव्यथाम् । व्यञ्जनान्तनिपतित-स्तालु विद घ्यति वृश्चिकः ॥५१॥ विलग्नश्च गले बालः, स्वरभङ्गाय जायने । इत्यादयो दृष्टदोषाः, सर्वेषां निशि भोजने ॥५२।।
-योगशास्त्र भोजन के साथ चिउंटी खाने में आ जाय तो वह बुद्धि का नाश करती है, ज जलोदर रोग उत्पन्न करतो है, मक्खी से बमन हो जाता है और कोलिक-छिपकली से कोट उत्पन्न होता है ॥५०॥ काँटे और लकड़ी के टुकड़े से गले में पीड़ा उत्पन्न होती है, शाक आदि व्यंजनों में बिच्र्दू गिर जाए तो वह ताल को बेच देता है ॥५१।। गले में बाल फस जाए तो स्वर भंग हो जाता है। रात्रि भोजन में पूर्वोक्ता अनेक दोष प्रत्यक्ष दिखाई देते है ।।५।। उलूक-काक-मार्जार-गृध्र-शम्बर-शूकराः । अहि-वृश्चिक-गोधाश्च, जायन्ते रात्रिभोजनात् ।।
-योगशास्त्र ३१६७ रात्रिभोजन करने से मनुष्य मरकर उल्लू, काक, बिल्ली,