SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० ܀ २. मधुरमपि बहुवादित मजीर्ण भवति । अनारोग्यमनायुष्य-मस्वर्ग्य चातिभोजनम् । ---मनुस्मृति २।५७ अधिक भोजन करना अस्वास्थ्यकर है। आयु को कम करनेवाला और परलोक को बिगाड़नेवाला है । अतिभोजन ३. अतिमात्रभोजी देहमग्निविधुरयति । ५. अविक मात्रा में खाया हुआ मधुर पदार्थ की बदहजमी पैदा कर देता हैं । - नीतिवाक्यामृत १६०१२ मात्रा से अधिक खानेवाला जठराग्नि को खराब करता है । बहुभोजी एवं बहुभोगी बहुरोगी होता है । - हायोजि नस ५. भूखों मर जाना विवशता है और खाकर मरना मुर्खता । - आचार्य तुलसी ६. आहार मारे या भार मारे । - राजस्थानी कहावत ७. मनमां आवे तेम बोलवं नहि नैं भावे तंटलं खातुं नहि । अन्न पारकुं छे परण पेट कई पार नथी । - गुजराती कहावत एकबार खानेवाला महात्मा, दो बार संभलकर खानेवाला ११२
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy