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पासवां भाग : मर। कोठक
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बुद्धिमान और दिन भर बिना विवेक खानेवाला पशु । ।
६. : भार सलों को भी मार कर हानेकाले विशेष
मुखी होते हैं। १०. पांचवें आरेवाले मनुष्यों की अपेक्षा ४-३-२-१ आरेवाले मनुष्य
एवं देवता क्रमशः अधिक सुली हैं, क्योंकि वे कम खाते हैं । ११. थोत्राहारो थांब भणियो य, जो होइ थोनिद्दो य । थोवोवहि-उवगरगो, तस्स देवावि परमति ।।
-आवश्यकनियुक्ति १२६५ जो साधक थोड़ा खाता है, श्रोडा बोलता है, थोड़ी नोंद लेता है और घोड़ी ही धर्मोंपकरण की सामग्री रखता है, उसे देवता भी
नमस्कार करते हैं। १२. कम खाना और गम खाना अक्लमंदी है।
-हिन्दी कहावत
HAATAKAT
TRASNNimwali