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________________ पांचवां भाग : दूसरा कोष्टक र रुचि के अनु. पाचन शक्ति के अनुसार खाना खान' सार बोलना चाहिए। ५. सुजीमन्नं सुविचक्षगाः सुशासिता स्त्री नृपतिः स सुचिन्त्य चोक्नं सुत्रि वार्य : सुदीर्घकालेऽपि न याति विक्रिया म्। - हिर १२२ पना हुआ भोजन, विचक्षण पुत्र, आजा में रहनेवाली स्त्री, सुसेवित राजा, सोचकर कहा हुआ बचन और विचारपूर्वक किया हुआ काम--ये लम्बे समय तक विकार को प्राप्त नहीं होते । ६. अजीर्णे भोजनं विषम् । -चाणक्यनीति ४१५ अजीर्ण के समय किया हुला भोजन विष के समान काम करता है। ७. तक्रान्तं खलु भोजनम् । सुभाषितरत्नबहमंजूषा भोजन के अन्त में तक (छात्र) पीना चाहिए। ८, पुष्ठ खुराक विना नही, बनना तेज दिमाग । तेल और बत्ती बिना, कैसे जले चिराग ? __-दोहा-संवोहा ८३ ६. राब खावे त्यामै रूप किसो। --राजस्थानी कहावत
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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