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पौषा भाग : पहला कोष्ठक
यों कहकर अपनी मोतियों की माला एक डाकू के सिर पर रखो, वाण चलाया, वह माला को ले गया, लेकिन सिर के बाल हिले तक नहीं।
महम्मद गोरी ने कारगरनदी के किनारे भीषण युद्ध में हरा प्याराज हाल को पपाड़ लिया और हथकड़ी बेड़ी एवं गले में तोक पहनाकर गजनी में कैद कर लिया। इतना ही नहीं उसको दोनों आँखे भी निकलवा दी । पृथ्वीराज के परमसखा चन्द्रकवि भी योगी के रूप में वहां जा पहुंचे । अपने अद्भुत व्यक्तित्व और बुद्धिमत्ता से बादशाह के प्रीतिपात्र बने । मौका लगाकर अपने स्वामी से मिले और दुःख-सुख की बातें की। वैर का बदला लेने की ठानकर एक दिन बादशाह मे कहने लगे-कि पृथ्वीराज जैसे बहादुर नरेश को इस प्रकार दुःख देना आप जैसे बादशाह को झोभा नहीं दता । जनसे अनेक अद्वितीय - शस्त्रविद्याएँ सीखनी चाहिए। वे इतने अद्भुत शब्दवेत्री हैं कि सौ-सौ मन के सात तवे तलाऊ पर रखकर कंकर मारने के साथ ही उन्हें फोड़ सकते हैं । दुर्भाग्यवश गोरी के जंच गई एवं एक तरफ तलाक पर सात तवे रखे गये । तथा एक तरफ ऊंचे मचान पर बादशाह बैठा । पृथ्वीराज आये, हरकड़ी-बेड़ी हटा दी गई । प्रत्यंचा चढ़ाते समय कई धनुष टूट गए । आखिर उन्हें उनका मूल धनुष लाकर