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________________ वक्तृत्वकला के बीज दर्जन बच्चों को कंधों पर बिठाकर खड़ी तारी का प्रदर्शन किया । तैराकों के उस्ताद ८० वर्षीय पंडित लल्लु भाई का कहना है कि तैरना सब रोगों की अचूक दवा है। -नवभारत टाइम्स १२ अक्टूबर १९६१ से । छ: मास का एक बच्चा नौ मिनट तक बिना किसी और के सहारे पानी में तैरता रहा । पांच महीने की एक लड़की साढ़े तीन मिनट तक पानी में तैरती रही। ----मिलाप १६ नवम्बर ७१ (छ) बाणकला१. बड़ौदा आर्यकन्या-महाविद्यालय की कन्याओं ने राज्यपाल मंगलदास पकवासा के स्वागत में, सोकर पैरों से तीर चलाए । उन तीरों ने सामने रखी हुई पुष्पमाला लेकर राज्यपाल के गले में पहना दी। २. अमरापुर का लक्ष्यवेधी चम्पा वणिक ऊँट पर चढ़ा हुआ परदेश से धन कमाकर आ रहा था । तीन डाकू मिले, धन मांगा। उसने कहा-दानरूप में दे सकता हूं। डाकु-हो जा लड़ने को तैयार। वणिक नीचे उतरा एवं दो तीर तोड़ डाले । (उसके पास कुल पांच तीर थे) पूछने पर वोला-तुभ पैदल हो और तीन हो, एक बाण से अधिक न मारने की प्रतिज्ञा है । विस्मित डाक बोले-पक्षी मारकर परीक्षा दे। वणिक-व्यर्थ हिसा कौन करे !
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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