________________
भोजन की विधि १, पूजयेदशनं नित्य-मद्याच्चैतदकुत्सबन् ।
दृष्ट्वा हुध्येत्प्रसोदेच्च, प्रतिनन्दन सर्वशः ।।५।। पूजितं ह्यानं नित्यं, बामु च यच्छति । अपूजितं तु तद्भुक्त-मुभयं नाशयदिदम् ।।५।। नोच्छिष्ठकस्यनिद्रद्यानाशाच्चैव तथान्तरा । न वाध्यशन कुर्याद्, न चोटिक्वचिद्वजेत् ।।५।।
-मनुस्मृति २ जो कुछ भोज्यपदार्श मनुष्य को प्राप्त हो, वह उसे सा आदर की दृष्टि से देखे । दोष न निकालता हुआ उसे खाए । उसे देखकर हर्ष, प्रसन्नता एक उमंग का अनुभव करे ।। ५४ । सत्कार किया हुआ अग्न बल और शक्ति को देता है एवं तिरस्कार को भावना से खाया हुआ अन्न उन दोनों का नाश कर देता है ।। ५५ ॥ जूठा भोजन किसी को न दें । प्रातः भोजन करने के बाद सायंकाल में पहले बीन में कुछ न खाएं । अधिक न लायें और जूठे
मुख कहीं न जावें || ५६ ॥ २. अपवित्रोऽतिगार्थ्याच्च, न भुजीत विचक्षणः । कदाचिदपि नाश्नीया-दुष्कृत्य च तर्जनीम् ।
-विवेक-विलास ८५