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पाँचवां भाग : दूसरा कोष्टक
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शुक्लध्यानरूप अग्नि से कर्मों को जला देनेवाला व्यक्ति सिद्ध भगवान् बन जाता है ।
६. काउस्सग्गेणं ती डुप्पन्नपायच्छितं विसोइ विसुद्धपायच्छिक जो हिए ओमान भारताहे पसत्याग्रहोत्रगए सुहं सुणं विहरइ ।
- उत्तराध्ययनं २६।१२ कार्यात्म (ध्यान अवस्था में समस्त चेष्टाओं का परित्याग ) करने से जीव अतीत एवं वर्तमान के दोषों की विशुद्धि करता है और विशुद्ध प्रायश्चित्त होकर सिर पर से भार के उत्तर जाने से एक भारवाहकवत् हल्का होकर सद्ध्यान में रमण करता हुआ मुखपूर्वक विचरता है ।
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