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ध्यान से लाभ १. मोक्षः कर्मक्षयादेव स, चात्मज्ञानतो भवेत् । ध्यानसाध्यं मतं तच्च, तद्व्यानं हितमात्मनः ।
- योगशास्त्र ४।११३ कर्म के क्षय से मोक्ष होता है, आत्मज्ञान से कर्म का क्षय होता है
और ध्यान में आत्मज्ञान प्राप्त होता है । अतः ध्यान आत्मा के लिए हितकारी माना गया है । झागरिगलीगी साहू, परिचागं कुगाइ सत्रदोसाणं । तम्हा दुझारणमेव हि, सवधि चारस्स पडिक्कमणं ।।
- नियमसार ६३ इयान में लीन हुआ साधक गब दोषों का निवारण कर सकता है।
इसलिए ध्यान ही समग्र अनि रागें (दोषों) का प्रतिक्रमण है । ३. ध्यानयोगरतो भिन्नः प्राप्नोति परमां गतिम् ।
-शंखस्मृति घ्यान-योग में लीन मुनि मोक्षपद को प्राप्त करता है । ४. वीतरागो विमुन्टोत, वीतरागं बिचिन्तयन् ।
--योगशास्त्र ।।१३ ध्यान करता हुआ बोगी स्वयं वीतराग होकर कर्मों से या बास
नाओं से मुक्त हो जाता है । ५. ध्यानाग्नि-दग्धकर्मा तु, सिद्धात्मा स्यान्निरजनः ।
---योगशास्त्र