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वामृत्वासाः ६. बीज
हे सूर्यनारायण ! यक्षपति और देवताओं मेरी प्रार्थना है कि अक्ष विषयक तथा कोष से किए हुए पापों से मेरी रक्षा करें ! दिनरात्रि में मन, वाणी, हाथ, पैर, उदर और विशश्न-लिङ्ग से जो पाप हर हों, उन पापों को मैं अमृतयोनि सूर्य में होम करता हूँ ।
इसलिए उन पापों को नष्ट करें ! संध्या के तीन अर्थ है
१ उत्तम प्रकार से परमेश्वर का ध्यान करना। २ परमेश्वर से मल करना । ३ दिन-रात की मधि में किया जानेवाला कर्म ।