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________________ वैयावृत्त्य १. वैयावृत्त्यम-भक्तादिभिर्धमोपग्रहकारिवस्तुभिरुण ग्रह करणे .. - ५ का धर्म में सहारा देनवाली आहार आदि वस्तुओं द्वारा उपग्रह-महायता करने के अर्थ में बयावृत्त्य शब्द आता है । (वयोवृत्त्य अर्थात् सेवा) २. दसबिहे बेयवरचे पणते, तं जहा-- १ आयरिमवेयावच्चे, २ उवज्झायवेयावच्चे, ३ थेरवेयावच्चे, ४ तवस्सिवेयावच्चे, ५. गिलारणवेयावच्चे ६ सेहरयावनचे ७ कुलबेयावच्चे ८ गणवेयावच्चे ६ संघवेवावच्चे १० साहम्मिययावन्चे । -स्थानांग १०५४४६ बस प्रकार की यावृत्त्य कही है.- १. आचार्य को वयावृत्त्य, २ उपाध्याय की नैयाबृत्त्य, ३ स्थविर की यावृत्त्य, ४ तपस्वी की दयावृत्त्य, ५ ग्लान मुनि को वैवावृत्त्य, ६ नवदीक्षित मुनि की बयावृत्त्य, ७ कुल एक आचार्य की संतति या चन्द्र आदि साधु समुदाय की वैयावृत्त्य, ६ संघ [गणों का समूह की बयावृत्त्य, १० सामिक-साधु की वैयावृत्त्य । ३. भत्ते पारणे सगरणासणे (य), पडिलेह-पायमच्छि मद्धाणे । राया तेरणे दंड-गाहे गेलन्नमत्त य । –व्यवहारभाध्य ३।१० गा० १२
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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