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पाँचयां भाग : पहला कोष्टक
६. पडिसिद्धाणं करणे, किच्चारामकरणे पडिक्कमणं, असद्दहण य लहा, बिवरीय परूवगाए य ।
--आवश्यक नियुक्ति १२६८ हिमादि निषिद्ध कार्य करने का, स्वाध्याय प्रतिलेखनादि कार्य न करने का, तत्त्वों में अश्रदमा उत्पन्न होने का एवं मास्त्र-विरुद्ध
प्ररूपणा करने का प्रतिक्रमण किया जान चाहिए । ७. पडिक्कमरण । वयछिदारिण पीहेइ। - उत्तराध्ययन २६१
प्रतिक्रमण करने से जीव व्रतों के छिद्रों को ढंक देना है । सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमस्स पच्छिमस्त यजिपस । मज्झिमयारा जिगाए, कारणजाए पडिक्कम ॥३४७।। गमरणागमण-वियारे, सायं पाओ य पुरिम-चरिमारग । नियमेण पडिक्कमण', अइयारो होइ वा मा बा ||३४।।
-हरकरूपभाष्य-६ प्रथम और अन्तिम तीर्थ करों का सम्प्रतिफमण धर्म है । मध्यमबाइस तीर्थ करों के समय म्खलना होने पर प्रतिक्रमण करने का विधान है। प्रथम अन्तिम तीर्थ करों के माधुओं के गमन-आगमन में एवं उच्चार आदि परलने में चाहे स्वलना हो या न हो, उन्हें
सुबह-शाम षडावश्यकरुप प्रतिक्रमण अवश्य करना ही चाहिए । वैविक संध्या६. ओउम् सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृनेभ्यः
पापेभ्यो रक्षन्ताम् । यद्राश्या यदह्ना] पापमकार्प मनसा वाचा हस्ताभ्यां पमधामुदरेण शिफ्ना रात्रिस्तदवलुम्यतु यत् किञ्चिद् दुरितं मयि इदममापोऽमृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ॥ -नित्यकर्म विधि पृष्ठ ३२