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________________ * वक्तृत्वकला के बीज विराधना । २. प्रमादप्रतिसेवना - मद्यपान, विषय, कसाय, निद्रा और विकथा - इन पांच प्रकार के प्रभाव के सेवन से होनेवाली संयम की विराधना | (३) अनाभोगप्रतिसेवना- अज्ञान के वश होनेवाली संयम की विराधना P (४) आतुरप्रतिसेवना- भूख प्यास आदि किसी पीड़ा से व्याकुल होकर की गई संयम की विराधना । (५) आपत्प्रतिसेवना- किसी आपत्ति के आने पर संयम की विराधना करना | आपत्ति चार प्रकार की होती है : (क) द्रव्यापत्ति प्राशुक आहारारादि न मिलना । : (ख) क्षेत्रापत्ति- अटवी आदि भयंकर जंगल में रहना पड़े । (ग) कालापत्ति दुर्भिक्ष आदि पड़ जाए । (घ) भावापत्ति- बीमार हो जाना, शरीर का अस्वस्थ होना । -- (६) संकीर्णप्रतिसेवना- स्वपक्ष एवं परपक्ष से होनेवाली जगह की लंगी के कारण समय का उल्लंघन करना अथवा सङ्कित प्रतिसेवना ग्रहण करने योग्य आहार आदि में किसी दोष की शङ्का होजाने पर भी उसे ले लेना । (७) सहसाकार प्रतिसेवना - अकस्मात् अर्थात् बिना सोचे-समझे किसी अमचित काम की कर लेना । (८) भयप्रतिसेवना भय से संयम की विराधना करना, जैसे
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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