SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ उपवास १. चतुर्विधाशनत्याग उपलायो मतो जिनः । —सुभाषितरत्न-संबोह अशन आदि चारों प्रकार के आहार का त्याग करना भगवान के द्वारा उपवास माना गया है । उपवासः स विज्ञ यः, सर्वभोगविवजित : । -मार्गशीर्ष-एकादशी सभी भागों का त्याग करना उपवास नामक व्रत है। ३. आरोग्य रक्षा का मुख्य उपाय है उपवास । ४. मर्यादा में रहकर उपवास करने से बहुत लाभ होता है । ५. साधु एक उपवास में जितने कर्म खपाला है, उतने कर्म हजारों वर्ष में भी नरक के जीव नहीं खपा सकत । बेले में साधु जितने कमों का नाश करता है, नारक-जीव लाखों वर्षों में उत्तने कर्म नहीं खपा सकते । साधु तेले में जितनी कमनिर्जरा करता है, नारक-जीव उतनी कर्मनिर्जग करोड़ों वर्षों में भी नहीं कर सकते । साधु चोले में जितने कर्म नष्ट करता है, नारक-जीव कोटि-कोटि वर्षों में भी उतने कर्म नष्ट नहीं कर सकते। -भगवती १६४
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy