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________________ पौषध १. पोषं धर्मस्य धत्ते यत्, तद्भवेत् पौषधवतम् । --उपदेशप्रासाद जो अत धर्म को पुष्ट बनाता है, उसे पंधमाल से हैं। २. आहार-तनुसत्कारा-ब्रह्म-सावद्यकर्मणाम् , त्यागः पर्वचतुष्टय्यां, तहिदुः पोषधवतम् । __ -धर्मसंग्रह ११३७ आहार. शरीर का सत्कार, अब्रह्मचर्य, और सायनकार्य-चारों पवं निथियो (अष्टमी, नतुर्दशी, अमायस्य और पूर्णिमा) में इन सबका त्याग करना पौषधक्षत है। ३. बौद्ध परम्परा में पौषध की भाँति उपोसथ का विधान है। बुद्ध के अनेक भक्त (उपासक) अष्टमी चतुर्दशी, अमात्रम्या और पुणिमा को उपोसाथ किया करते थे। (देखेंपेटावत्थु अदुकथा गाथा २०६ तथा विनयपिटक महावग्ग उपोसथ में उपासक निम्न आट शीलका पालन करता है-- (१) प्रामातिपात-विति, (२) अत्तादान-विरति, (:) काय भावना विर!त, (४) मृपावाद-विति, i५) मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना, १६! निकाल भोजन नहीं करना, ७) भूप, गीत, शरीर की विभूषा आदि नहीं करना, (4) उन्नान नथा सजीधगी शरभा का त्याग करना । -आगम और त्रिण्टिक : एक अनुशीलन पृष्ठ ६५५,
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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