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तप . तापयति अप्टप्रकार करें इति तन:।
-अावश्यक मलयगिरि खण्ड २ अ. १ जो आठ प्रकार के कर्मों को तपाता है, उसका नाम 'सप' है। २. इन्द्रियमनसोनियमानुष्ठान तप ।
-नीतिवाक्यामृत १।२२ पाँच इन्द्रिय (स्पर्शन-मना-प्राण-वन-श्रोत्र) और मन को वश में
करना या बढ़ती हुई लालसाओ को रोकना तप है। ६. थेदस्योपनिषत् सत्य, सत्यस्योपनिषद दमः । दमस्योपनिषद् दान, दानस्योगनिषत् तरः ।।
--महाभारत शान्ति पर्व अ० २५४११ वेद का सार है सत्य वचन, सत्य का सार है इन्द्रियों का संयम, संयम का सार है दान और दान का सार है 'तपस्या' । तपो हि परमं श्रेयः , संमोहमितरत्मरत्रम् ।
-वाल्मीकि रामायण ७/८४१४ तप ही परम कल्याणकारी है । तप से भिन्न सुख मो मात्र बुद्धि
के सम्मोह को उत्पन्न करनेवाला है। ५. तपस्या जीवन की सब से बड़ी कला है ।
गांधी ६. परक्कमिज्जा तवसंजमंमि । -दशवकालिक ८४१
तप-संयम में पराक्रम करना चाहिए ।
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