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________________ ११ तप . तापयति अप्टप्रकार करें इति तन:। -अावश्यक मलयगिरि खण्ड २ अ. १ जो आठ प्रकार के कर्मों को तपाता है, उसका नाम 'सप' है। २. इन्द्रियमनसोनियमानुष्ठान तप । -नीतिवाक्यामृत १।२२ पाँच इन्द्रिय (स्पर्शन-मना-प्राण-वन-श्रोत्र) और मन को वश में करना या बढ़ती हुई लालसाओ को रोकना तप है। ६. थेदस्योपनिषत् सत्य, सत्यस्योपनिषद दमः । दमस्योपनिषद् दान, दानस्योगनिषत् तरः ।। --महाभारत शान्ति पर्व अ० २५४११ वेद का सार है सत्य वचन, सत्य का सार है इन्द्रियों का संयम, संयम का सार है दान और दान का सार है 'तपस्या' । तपो हि परमं श्रेयः , संमोहमितरत्मरत्रम् । -वाल्मीकि रामायण ७/८४१४ तप ही परम कल्याणकारी है । तप से भिन्न सुख मो मात्र बुद्धि के सम्मोह को उत्पन्न करनेवाला है। ५. तपस्या जीवन की सब से बड़ी कला है । गांधी ६. परक्कमिज्जा तवसंजमंमि । -दशवकालिक ८४१ तप-संयम में पराक्रम करना चाहिए । २४
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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