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पांचवां भाग : पहला कोष्ठक
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आखिर हंस कर बह ने इस प्रकार मंत्र की पूर्ति कीसामायिक तो मारे पिहरे भी करता पण आ किरिया नहीं वेखीजो ! णमो लोए सवसाहणं । सेठ सामायिक कर रहे थे । बहू घर में काम कर रही थी। बाहर में सेठ को पूछता हुआ एक आदमी आया । बह ने कहा-मोठजी मोची की दुकान पर जूते खरीद रहे हैं। जाकर देखा तो वहां न मिले। वापिस आकर पुछा । उत्तर मिला कि अब कपड़े की दुकान पर कपड़ा देख रहे हैं । वहां जाकर भी खाली आया । बहू बोली-वे तो इन्कमटेक्स के दफ्तर में गये हैं। इस प्रकार आगन्तुक को कई जगह धुमाकर अंल में कहने लगी अब सेठजी सामायिक कर रहे हैं। इतने में सेठ सामायिक करके बाहर आये ।
और बहु पर कद्र होने लगे । बहूँ ने विनम्र शब्दों में कहानिनाजी ! केवल मुंह बांधने से सामायिक नहीं होती, बतलाहार आप सामायिक करते समय मन से मोची आदि के यहां गये थे या नहीं ! सेठजी चुप रहे क्यों कि वास्तव में बहू का बात सत्य थी।