________________
सामायिक के विषय में विविध /१. सामायिक के अधिकारी
जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेगु य । तस्स सामाइयं होइ, इइ केलि भासियं ।। जस्स सामाणिनी अप्पा संजमे रिणयमे तवे । तम्स सामाइयं होइ, ३६ केबलि - भासियं ।। जो साधक त्रस-स्थावररूप सभी जीत्रों पर गभाव रखता है, उसी का सामायिक शुद्ध होता है-सा केवली-भगवान ने कहा है। जिसकी आत्मा मंयम, नप और निवग में मंलग्न हो जाती है; उमी का सामायिक शुद्ध होता है-ऐसा क्षेवली-भगवान ने
“२. सामायिक के भेद
दुबिहे सामाइप पराते, तं जहा- आगारसामाइए सेब, अरणगारसामाइए चेव ।
-स्थानाङ्ग २।३ सामयित्र दो प्रकार वा कहा है
(१) आगारसामायिक और (२) अनगार सामायिक । ३. सामायिक के अतिचार
एयरस नव मम्म सामाझ्यवयस्म, पंच अड्यारा जाणियन्वा, न समारियब्वा, तं जहा-मरण-दुप्पणिहाम्गे, बय दुप्प