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पाँचवां भाग : पहला कोष्ठक
रिगहाणे, काय दुष्पगिहाणे , समाइयस्स सइ-अकराया, सामाझ्यस्स बणवद्वियम्सा करणया, तस्स मिच्छामि दुक्कई ।
-श्रावक-आवश्यक इस नौवें सामाणिकवत के पांच अतिचार जानने योग्य हैं, लेकिन धायक के लिए वे आचरने योग्य नहीं । यथा१ मन की दुष्प्रवृत्ति, २ वचन की दुष्प्रवृत्ति, ३ काया की दुष्प्रवृत्ति, ४ सामायिक की स्मृति न रखना, ५ सामायिक को जन्यवस्पित करना।
४. सामायिक के ३२ दोष
१. मन के इस दोषअविकक जसो-कित्ती, लाभत्थी गच्च-भय नियारात्थी । संसबरीस अधिओ, अवहुमागए दोसा भारिणयवा ॥ १ अविवेक, २ यश-कीर्ति, ३ साभार्थ ४ गर्व ५ भय ६. निदान ७ संशय ८ रोष ६ अविनय १० अबहुमान ।
२. वचन के दस दोष--
कृत्रयण सहसाकारि, सच्छंद-संखेन कन्नई. च । विगहा बिहासोऽसुक्ष, निरवकालो मुगमरणा दस दोसा । १ कुवचन , २ महसाकार , ३ सच्छन्द , ४ संक्षेप , ५ बालह, ६ निवाथा, ५ हाम्य, ८ अशुद्ध, निरपेक्ष, १. मुम्मन ।