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________________ नवतृत्वकला के बीज आध्यान और रौद्रध्यान का त्याग करके सथा पापमय कर्मों का त्याग करके मुहूर्त-पर्यन्त प्रभाव में रहना सामायिकावत' है । ५. सामाइयं नाम सावज्जजोगपरिवज्जणं निरवज्जजोगपडिलेवणं च ।, ....आवश्यक-अयचूरि सावद्य अर्थात् पापजनक कर्मों का त्याग करना और निरवा अर्थात 'पापरहित कार्यों को स्वीकार करना 'मामायिक' है । आया सामाइए, आया सामाइयरस अटे। -भगवती १६ हे आर्य ! आत्मा ही गामाथिक है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ-फल है। सामायिक का महत्त्व७. सामाइय-म उ कए, समग्गो इव सावओ हवइ जम्हा । एए कारणोणं, बहुमो सामाइयं कुज्जा ।। -विशेषावश्यक-भाष्य २६६० –तथा आवश्यफ-नियुक्ति ८००।१ सामायिकब्रत भलीभांति ग्रहण करलेने पर धावक भी साधु जैसा हो जाता है, आध्यात्मिक-उसनदशा को पहुंच जाता है; अतः श्रावक का कर्ताक्य है कि वह अधिक से अधिक सामायिक करे | 5. सामाझ्य-वय-जुत्तो, जात्र मणो होइ नियमसंजुत्तो। छिन्नद्द असुहे कम्म, मामाइय जसिया बारा ।। -आवश्यकनियुक्ति २००२ चंचल मन को नियंत्रण में रखते हए जब तक सामायिक व्रत की । अवण्डधारा चालू रहती है तब तक अशुभकम बराबर भी होते रहते हैं।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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