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________________ सामायिक १. समानि ज्ञान-दर्शन-चारित्राणि, तेषु अयन-गमनं समायः, स एव सामाबिकम् । मोक्षमार्ग में साधन शान-दर्शन-चारित्र सम कहलाते हैं उनमें अयन यानी प्रवृत्ति करना सामायिक है। समभावो सामाऽयं, लण-कंचरण-सत्त-मित्त विसउ त्ति । गिरभिस्संग चित्त, चियपवित्तिप्पहारगं च । -पंचाशक चाहे तिनका हो, चाहे सोना, चाहे शत्रु हो, चाहे मिथ, मर्वत्र अपने मन को राग-द्वेष की आसक्ति से रहित रखना तथा पापरहिन वित्त धार्मिक प्रवृत्ति करना, 'सामायिक' है; समभाव ही सामायिक है। ३. समता सर्वभूतेषु, संयमः शुभ-कामना । आर्त रौद्र परित्याग-स्तुद्धि सामायिक व्रतम् ।। सव जोवों पर समता-समभाव रखना, पाँच इन्द्रियों का संयमनियंत्रण करना, अन्तर्ह दय में रामभावना शुभसंकल्प रखना, आर्त-रौद्र दुयानों का त्याग करके धर्म ध्यान का चिन्तन करना 'सामायिक' है। ४. त्यक्तात-रौंद्र ध्यानस्य, त्यक्तसावधकर्मणः । मुहर्त समता या तां, विदुः सामायिक बतम् ।। -योगशास्. २८२
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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