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चौथा भाग : चौथा कोष्ठक
___३२१ २१. नो तुच्छए नो य विकत्थइज्जा ।
-सूत्रकृतांग श१४।२१ साधक न किसी को सुच्छ (हलका) बताए और न किसी की
सठी प्रशंसा करे । २२. निरुद्धगं वावि न दीहइज्जा।
--सूत्रकृतांग ११४१२३ थोड़े से में कही जानेवाली बात को न्यर्थ ही लम्बी न करे। २३. नाइवेल वएज्जा ।
-सूत्रकृतांग ॥१४॥२५ साधक आवश्यकता से अधिक न बोले । २४. नो छायए नो वि य लूसएज्जा ।
- सूत्रकृतांग २।२४।१६ उपदेशक सत्य को कभी छिपाए नहीं, और न ही उसे तोड़मरोड़ कर उपस्थित करे ।