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घक्तृत्वकला के बीज
सकते है--ज्ञान के लिए, वर्शन के लिए, चारित्र के लिए, आचार्य-उपाध्याय के मरणासन्न होने पर तथा रोग आदि की परिस्थिति में उनकी सेवा करने के लिए।
६. जहाँ स्वाध्याय-भूमि एवं स्थंडिल-भूमि आदि शुद्ध न हो, बहाँ साधु चातुर्मास न करे।
—आचारांग अत अ० ३ उ-१