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चौथा भाग चौथा बोष्ठक
५. जीवमालाकुले लोके, वर्षास्वेकत्र संवसेत् ।
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वर्षा ऋतु में पृथ्वी नाना प्रकार के जीवों से परिपूर्ण हो जाती अतः साधु उस समय एक जगह ही रहें । ६. नोकप्पइ निग्मथाणं वा निग्गंधीणं वा । वासावासासु चरितए ।
- अत्रिस्मृति
आचारंग श्रुत २ अ० ३ ३० १
साधु-साध्वी को वर्षा ऋतु में विहार करना नहीं कल्पता । विशेष कारणों की स्थिति में कर श्री एक ने कारण निम्नलिखित हैं
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७. असिवे ओमोयरिए, रायदुट्ठे भए व गेलन्ते । आबाहा दिए व पंचसु ठाणेसु रीएज्जा ||
- अभिधान राजेन्द्रकोष भाग ६, पृष्ठ १२६० (१) शत्रु राजा का उपद्रव होने पर ( २ ) आहार न मिलने पर ( ३ ) राजा का द्वेष होने पर, (४) चोर आदि के भय से (५) ग्लान साधु-साध्वी की सेवा करने के लिए - इन पाँच कारणों से साधुवर्षा ऋतु में विहार कर सकता है | ८. नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंधीणं वा पदमपाउसंसि गामाणुगामं दुइज्जित्तए । पंचहि ठाणेहि कप्पर, सं० णाणट्ट्याए, दंसणट्ट्याए, चरितव्याए, आयरियउवज्झाए वा से बिसु भेज्जा, आयरिय उवज्झायाणं वा बहिया वैयावच्चकरणयाए । स्थानांग ४।२।४१३ साधु-साध्वी प्रथम वर्षाकाल में एक गाँव से दूसरे गाँव को विहार नहीं कर सकते; किन्तु पांच कारणों से बिहार कर
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