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________________ ३२ १. चउन्हें खलु भासाणं, परिसंखाय पुष्णवं । तुमि हो न शासिज्ज सब्वसो ॥१॥ साधु की भाषा बुद्धिमान मुनि सत्य, असत्य, मिश्र, व्यवहार- इन चारों भाषाओं को जानकर दो- सत्य एवं व्यवहार द्वारा तो बिनय सीखे किन्तु असत्य और मिश्र – ये दोनों भाषाएं सर्वथा न बोले ! २. असच्चमो सच्चं च अणवज्जमकक्कसं । समुप्पे हमसंदिद्ध, गिरं भासिज्ज पण्णवं ॥ ३॥ ५. प्रज्ञावान् मुनि व्यवहार एवं रात्य भाषा भी निरवद्य, कोमल एवं संदेह रहित हो, यही सोच-विचार कर बोले । ३. तम्हा गच्छानो बक्खामो, अमुगं वा णें भविस्सइ | अहं वा णं करिस्सामि एसो वा णं करिस्सइ || || J हम जाएँगे, हम बोलेंगे, हमारा अमुक कार्य हो जायेगा, मैं यह करूँगा, यह व्यक्ति यह काम करेगा - इस प्रकार निश्चयकारिणी भाषाएँ साधु न बोले । ४. जमट्ठे तु न जाणिज्जा, एवमेयं ति नो वए till भूत-भविष्यत् एवं वर्तमान काल सम्बन्धी जिस वयं को न जानता हो, उसे यह 'इस प्रकार ही है, ऐसा न कहे । r जत्थ संका भवे तं तु एवमेयं ति नो वए ॥१६॥ ३१७
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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