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तयार
चौथा भाग : चौथा कोष्ठक ४. तेषामद्भिः स्मृतं शौचम् ।
-मनुस्मति ६१५३ तुबा आदि के पात्रों की शुद्धि जल से मानी गई है । ___५. सौवर्ण-मणिपात्रषु, कांस्य-रीप्यायसेषु च । भिक्षां दद्याप्न सर्वज्ञो, ग्रहीता नरकं ब्रजेत् ।।
--विटणपुराण खंड २ अ० १३२ सोना, रत्न, वसी, चांदी और लोहे के पात्रों में साधु का भिक्षा नहीं देनी चाहिए-इन पात्रों में भिक्षा लेनेवाला नरक में जाता है।