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साधुओं के पात्र
१. से भिक्खु वा भिक्खुणी वा अभिकलेज्जा पायं एसित्तए ।
सेजं पुण पाय जाणेज्जा,तं जहा-~अलाजुयपायं वा,दारुपायं वा मट्टियापायं वा........अयपायाणि वा तउयपायाणि वा"...."नो पडिग्गाहेज्जा।
-आचारांग श्रु त २ ० ६ उ० १ साधु-साध्वियां यदि पात्र की गवेषणा करनो चाहें तो वह तुबे के, काष्ट के और मिट्टी के-ऐसे तीन प्रकार के पात्र ग्रहण करें । तथा लोह, तांबा, सीसा, चांदी, मोना, पत्थर, रत्न आदि के पात्र ग्रहण न करें। अलाबु-दारुपात्र त्र, मृन्मयं वै दलं तथा । एतानि यतिपात्राणि, मनु: स्वायंभुवोऽब्रवीत् ।
-मनुस्मृति ६।५४ स्वायंभुव मनु ने साधुओं के लिए निम्नलिखित पात्रों का विधान किया है- तुम्बी का पात्र, लकड़ी का पात्र, मिट्टी का पात्र और वृक्ष की छाल का पात्र । परमद्धजोयण-मेराए पायपडियाए णो अभिधारेज्जा गमणाए।
-आचारांग शुत २ अ० ६ उ. १ पात्र लेने के लिए साधु आधा योजन से आगे जाने की इच्छा न' करे।