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चौया माग : चौथा कोष्ठक
२. मणोहरं चित्तहरं, मल्लधूवेण वासियं । सकवाडं पंडरुल्लोयं, मणसा वि न पत्थए ।
- उत्तराध्ययन ३५४४ मुनिः ऐसे आश्रय की मनसे इच्छा न करे, जो मनोहर हो, जिसमें घृणित चित्र हों, जो माला और धूप से सुगन्धित हो, काबाड़ सहित हो, व श्वेतचन्द्रवेवाला हो ।