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साधुओं का निवास स्थान
सुसाणे सुन्नगारे वा, रुखमुले व एगओ। पइरिकके परकड़े वा, वासं तत्थाऽभिरोयए ।।६।। फासुयम्मि अणाबाहे, इत्थीहि अणभिदुए। तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए १७|| न सयं गिहाई कुविज्जा, नेव अन्नेहि कारए । गिकम्मसमारम्भे, भूयाणं दिस्सए बहो ।।८।।
--उसराध्ययन ३५
गाधु श्मशान, सूनाघर, वृक्ष के नीचे अथवा परकृत (गृहस्थ ने जो अपने लिए बनाया) एकान्तस्थान में एकाकी रहना पसंद करे ॥६॥
जो स्थान प्रासुक हो, किसी को पीडाकारी न हो, एवं जहाँ स्त्रियों का उपद्रव न हो, परम संयमी साधु उस स्थान में निवास करे ॥७॥
साधु स्वयं घर आदि न बनाये और दूसरों से न बनवाये, क्योंकि गृह आदि कार्य के समारम्भ में प्राणियों की हिंसा प्रत्यक्ष दिखाई देती है ।।८।।