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पा भाग : चौथा कोष्टक 1. हिंठाणेहि समणे निगंथे आहारं बोच्छिदे माणे
णाइवकमई, तं जहाआयके उचसग्गे, तितिक्खणे बंभचरेगुत्तोस। पाणीदया तबेहेड, सरीरवोच्छेयणछाए ।
-स्थानांग ६ तथा उत्तराध्ययन २६१३५ छ: कारणों से श्रमण -निग्रन्थ आहार का त्याग करता हुआ । प्रभुशाजा का उल्लंघन नहीं करता। जैसे-१. रोग एवं उपसग होने पर, २. ब्रह्मचर्य का पालन न कर सकने पर, ३, जीवदया न पल सकने पर ४. तपस्या करने के लिए ५. अनशनादि द्वारा शरीर छोड़ने के लिए। शरीर का परिवहन करने में ग्लानि होने लगे, तन साधु को चतुर्थ षष्ठ आदि तप करके आहार को घटाने लग जाना चाहिए, अर्थात् संलेखना करनी चाहिए ।
-आचारांग ८१.