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________________ MCN वक्तृत्वकला के बीच ५. अक्खोवंजणाणुलेवणभूयं संजमजायामायणि मित्त, संजमभारवहणठ्ठयाए भुज्जेजा पाणधारणट्ठाए । .. प्रश्नव्याकरण २१ जैसे-गाड़ी चलाने के लिए पहियों के अंजन (स्निग्ध-तेलादि) लगाया जाता है, घाव को ठीक करने के लिए उस पर लेपमरहम लगाया जाता है, उसी प्रकार साधु की संयमयात्रा निभाने के लिए संयम-भार को बहने के लिए तथा प्राणों को धारण करने के लिए भोजन करना चाहिए । रारं गाव या पता : व्रणशोधनवत् स्नान, बस्त्र च श्रणपट्टवत् ।। --चैतन्य महाप्रभु शरीर व्रण-धात्र के समान है, अन्न उस पर मरहम का लेप' है। स्नान प्रण को साफ करनेवाला है और वस्त्र व्रणपट्टी के तुल्य है। ७. छहि ठाणेहि समणे निग्गंथे आहारमाहारेमाणे गाइ क्कमइ, तं जहा-- वेयण - वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमछाए । तह पाणवत्तियाए, छठें पुण धम्मनिताए। .-.-स्थानांग ६ तथा उसराध्ययन २६१३३ छ: कारणों से आहार करता हुआ साधु प्रभु-आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। वे कारण ये है – १. क्षुधायेदनीय को शान्त करने के लिये, २. वैयावृत्त्य-सेवा करने के लिये, ३. ईर्यासमिति का पालन करने के लिए, ४, संयम पालने के लिये, ५. प्राणरक्षा के लिए, ६. धर्म का चिन्तन करने के लिए। .
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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