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________________ चौथा भाग : चौथा कोष्ठक २६३ करता । न स्वयं आहार आदि पकाता, न पकवाला और न पकानेवाले का अनुमोदन करता, न स्वयं भोजन आदि खरीदता, न खरीदबाता और न खरीदनेवाले का अनुमोदन करता। ११. उच्च-नीच-मज्झिमकुले अडमाणे । - अंतकृद्दशावर्ग ६, अ० १५ इन्द्रभूति मुनि ऊंच-नोच-मध्यम कुल में पर्यटन करते हुए। १२. जायाए घासमेसिज्जा, रस गिद्धे न मिया भिक्खाए । --उत्तराध्ययन मा११ संयमयात्रा को निभाने के लिए मुनि' को आहार की गवेषणा नहीं करनी दाहिए। १३. अदीणो वित्तिमेसिज्जा । - वशवकालिक ५१२२६ साधु को सिंहवृति से आवश्यक वस्तुओं की गवेषणा करनी चाहिए। १४. लाभुत्ति न मज्जिजा, अलाभुत्ति न सोएज्जा। -आचारांग २१११४-११५ साधु को इप्टवस्तु के मिलने पर अभिमान नहीं करना चाहिए और न मिलने पर शोक नहीं करना चाहिए। १५. अलाभे म विषादी स्या-ल्लाभे चैव न हर्षयेत् । मनुस्मृति ६०५७ भिक्षा न मिलने पर विषाद न करे एवं मिलने पर हर्ष न मनाये।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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