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चौथा भाग : चौथा कोष्ठक
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करता । न स्वयं आहार आदि पकाता, न पकवाला और न पकानेवाले का अनुमोदन करता, न स्वयं भोजन आदि खरीदता, न खरीदबाता और न खरीदनेवाले का अनुमोदन
करता। ११. उच्च-नीच-मज्झिमकुले अडमाणे ।
- अंतकृद्दशावर्ग ६, अ० १५ इन्द्रभूति मुनि ऊंच-नोच-मध्यम कुल में पर्यटन करते हुए। १२. जायाए घासमेसिज्जा, रस गिद्धे न मिया भिक्खाए ।
--उत्तराध्ययन मा११ संयमयात्रा को निभाने के लिए मुनि' को आहार की गवेषणा
नहीं करनी दाहिए। १३. अदीणो वित्तिमेसिज्जा ।
- वशवकालिक ५१२२६ साधु को सिंहवृति से आवश्यक वस्तुओं की गवेषणा करनी
चाहिए। १४. लाभुत्ति न मज्जिजा, अलाभुत्ति न सोएज्जा।
-आचारांग २१११४-११५ साधु को इप्टवस्तु के मिलने पर अभिमान नहीं करना
चाहिए और न मिलने पर शोक नहीं करना चाहिए। १५. अलाभे म विषादी स्या-ल्लाभे चैव न हर्षयेत् ।
मनुस्मृति ६०५७ भिक्षा न मिलने पर विषाद न करे एवं मिलने पर हर्ष न मनाये।