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सुम्बर आय मिले सबहीं,
वक्तृत्वकला के बीज
इक दुर्लभ संतसमागम भाई !
५. कोटि जन्म की पुष्यकमाई तब सन्तन की संगति पाई। सतसंगति जन पावे जबही, आवागमन मिटावे तबही || ६. सवर्ण नाणे य विन्नाणे, पच्चक्खाणे व संजमे ।
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अणहए तवे चेब, वोदाणे अकिरिया सिद्धी ॥
- भगवती २५
तत्त्वज्ञान, तत्त्वज्ञान से प्रत्यास्थान सांसारिक संयम से अनाश्रव
साधुसंग से धर्मश्रवण धर्मश्रवण से विज्ञान - विशिष्ट तत्त्वबोध, विज्ञान में पदार्थों से विरक्ति, प्रत्याख्यान से संयम नवीन कर्म का अभाव, अनाथ से तप, तप से व्यत्रदान (पूर्वबद्ध कर्मों का नाश ) व्यवदान से निष्कमंता सर्वश्रा कर्मरहित स्थिति और निष्कमंता से सिद्धि - अर्थात् मुक्तस्थिति प्राप्त होती है ।
७. गिहिसंथवं न कुज्जा, कुज्जा साहूहि संथवं ।
दशवेकालिक ८५३
गृहस्थों संसारियों का परिचय नहीं करना चाहिए, किन्तु साधुओं का सत्संग करना चाहिए ।
८. संगति साधुन की करिये, कपटी लोगन से डरिये ।
निपट निरंजन