________________
साधुओं के गुण
१. चरण गुण---
बय-समणधम्म-संजम, वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तव, कोहनिमाहाइ चरणमेयं ।
–ओनियुक्ति-माष्य गाथा २ साधुओं द्वारा निरन्तर सेवन करने योग्य चारित्रसम्बन्धी नियमों को चरणगुण कहते हैं। चरणगुण सत्तर माने गये हैं । (ये मरणसत्तरी के नाम से प्रसिद्ध हैं) यथा-५ महाव्रत,,१० प्रकार का भ्रमणधर्म, १७ प्रकार का संयम, १० प्रकार की वयावृत्य, ब्रह्मचर्य की गुप्तियाँ, ज्ञानादिरत्मनिक, १२ प्रकार
का तप और ४ कषाय का निग्रह । २. करण गुण
पिडविसोही समिई, भावण-पडिमा य इन्दियनिरोहो । पडिलेहण-गुत्तीओ, अभिग्गहा चेव करणं तु॥
-ओंघनियुक्ति-भाष्यगाश ३ प्रयोजन उत्पन्न होने पर साधुओं द्वारा जिनका सेवन किया जाय, वे करणगुण' कहलाते है । करणगुण भी ७० हैं। (ये करणसत्तरी के नाम से प्रसिद्ध हैं) यथा-४ प्रकार की पिण्टविशुद्धि ५ समितियां, १२ भावनाएँ, १२ प्रतिमाएँ ५ इन्द्रियों का निग्रह, २५ प्रकार की पष्टिलेहणा, ३ गुप्तियां और, ४ अभिग्रह ।'
१ इसका विस्तृत विवेचन चारित्र-प्रकाश पुज ९ में देखिए।
२८५