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वक्तृत्वकला के बीज
मथुरा में प्रज्ञाचक्षु स्वामी विवेकानंदजी के पास वेदाध्ययन किया फिर उनकी आज्ञानुसार भारत भर में घूमकर घेदों का खूब प्रचार किया एन 'बम्बई में आर्यसमाज' की स्थापना की !
इनकी निर्भीकता अद्भुत थी। उपदेश के समय हर एक सत्य बात बेधड़क होकर कह डालते थे। कहा जाता है कि इसी कारण जोधपुर में इन्हें विष दिया गया था। असह्मवेदना हुई.फिर भी ये रामभाव में रहे और सन् १८८३ दीवाली की रात को समाधि-मरण प्राप्त किया ।
-कल्याण संतअंक तथा अध्ययन के आधार से ।।