SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा भाग : चौथा कोष्ठक २६३ मूर्ति बन गया । आखिर मीरा एकदिन घर से निकल गई और वृदावन' आदि स्थानों में घूमती हुई द्वारका पहुंच गई। कहा जाता है कि वहीं सं० १६६० में मीरा रणछोडदासजी की मूत्ति में विलीन हो गई 1 ___ 'नरसी जी का मायरा' और 'गीत गोविदं–टीका' आदि मीरा वी रचनाएं मानी जाती हैं । मीरा के भजन बहुत ही लोकप्रिय हैं। --कल्याण' संतअंक के आधार पर। .१५, आर्यसमाज के संस्थापक स्वामीवयानंद सरस्वती स्वामीजी का जन्म सं० १८८२ में, टंकारा (गुजरात) में हुभा । इनका जन्म-नाम मूलशंकर था । कहा जाता है वि १४ वर्ष की आयु में एक बार ये शिवरात्रि का व्रत रखकर शिवमंदिर में रात्रि-जागरण कर रहे थे । शिवलिङ्ग पर चढ़ाई हुई सामग्री को चूहे खाने लगे एवं उस पर मल-मूत्र करने लगे। यह देखकर इनकी मूर्ति-पूजा से श्रद्धा उठ गई और इनके मन में यह विचार हुआ कि जब यह शिवमूर्ति स्वयं अपनी रक्षा ही नहीं कर पा रही है तो अपने भक्तों की क्या रक्षा करेगी ! अस्तु, उसी क्षण इन्होंने सच्चे शिव की खोज करने का निश्चय कर लिया। अब ये विरक्त रहने लगे । फिर भी माता-पिता ने इनका जबर्दस्ती विवाह रचाया । विवाह के सभ्य इनकी १४ वर्ष की बहिन मर गई । इस घटना से इनका विरक्तिभाव एकदम बढ़ गया और विवाह को छोड़कर घर से निकल गए । पूर्णानंदजी के पास जाकर संन्यास ले लिया और दूर-दूर तवा भ्रमण करते हुए इन्होंने योगियों और सिद्धों से अनेक विधाएँ प्राप्त की।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy