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वक्तृत्वकला के बीण
नहीं किया । लेकिन पीछे से दादजी के अनुयायी 'दादूपंथी' माहलाने लगे।
दादूजी का प्रमाण स० १६६० में नारायणा नामक स्थान में हुआ । यह स्थान दादूपंथियों का प्रधान तीर्थ स्थान कहलाता है।
—कल्याण संतअंक' के आधार पर ।
१७. कृष्ण की परमभक्त मीराबाई
ये मेड़तिया राजपूत राठोड जोधा जी की प्रपौत्री, दाजी की पौत्री एवं रतनसी को पुत्री थीं।
इनका जन्म सं० १५७३ के लगभग चौकड़ी (मारवाड़) में हुआ । इनके ताऊ को लड़के भाई वीर जयमल कृष्ण-भक्त थे । बहिन-भाई चचपन से ही कृष्ण-भक्ति में विशोष रुनि लेते थे । एक साधु के पास कृष्ण की सुन्दर मूर्ति देखकर मीरा ने बाल-ह० किया और उससे मूर्ति प्राप्त करली ।
मीरा बा विवाह महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ । किन्तु कुछ समय बाद उनका देहान्त हो गया । अब तो कृष्ण ही मीरा के एक मात्र प्राणाधार रह गये। मीरा माण-प्रेम में लीन होकर मन्दिरों में कीर्तन और नृत्य करने लगी। इनके देवर राणा रतनसिंह वो मीरा का इस प्रकार स्वतंत्ररूप से घूमना बहुत अनुचित लगा। उन्होंने इनको यहुत कहा-सुना और डराया-धमकाया भी, लेकिन जब ये किसी तरह नहीं मानी तव इन'को जहर का प्याला दिया गया । जिसे ये भगवान का चरणामृत मानकर पी गई । फिर' पिटारे में एक सांप भेजा गया जो इनके लिए सालिग्राम की