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________________ चौथा भाग चौथा कोष्ठक तुम्हारे सारे अमंग भक्तों के पास सुरक्षित हैं ।" (ये अभंग आज भी संत साहित्य में बहुत प्रसिद्ध हैं। इधर पंडित रामेस्वर भट्ट के सारे शरीर में जलन पैदा हो गई। वह इनकी शरण में आया और भक्त बना । तुकारामजी का धर्म प्रचार बढ़ा। कई बार छत्रपति शिवाजी भी इनके सत्संग में आये थे । सं० १७०६ चैत्र कृष्ण २ को इसका स्वर्गवास हुआ जनश्रुति के अनुसार देहावसान के बाद इनका शरीर नजर नहीं काया | कल्याण संतअंक के आधार पर । १४. संत दादूदयालजी - --- वि० सं० १६०१ में अहमदाबाद के लोदीराम नामक एक ब्राह्मण को साबरमती नदी में तैरता हुआ एक संदूक मिला और उसमें से एक हंसता हुआ बालक निकला । यही बालक आगे जाकर संत दादूजी कहलाया। कहा जाता है कि ११ वर्ष की आयु में श्रीकृष्ण ने इन्हें दर्शन और तत्त्वज्ञान दिया था एक बार ये घर से निकल गये परन्तु घरवालों ने इन्हें वापस लाकर विवाह बंधन में जकड़ दिया । १६ वर्ष की आयु में ये फिर निकल पड़े। इस बार ये सांभर ( जयपुर ) में जा छिपे और रुई धुनने का धंधा करते हुए १२ वर्ष तक कठिन तपस्या में लगे रहे। ये मुख्यतया "लव-योग" में लीन रहते थे और 'निरंजन निराकार' पर जोर देते थे । . दादूजी के रज्जबदासजी - सुन्दरदासजी आदि १५२ शिष्य हुए जिनमें से १०० तो विरक्त रहे और शेष यांभाधारी कहलाने लगे । ५२ स्थानों में उनके दादू द्वारे बने हुए हैं । दादूजी ने अपने नाम से कोई पंथ या सम्प्रदाय प्रसिद्ध
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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