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वक्तृत्वकला के बीज
६. संता ! हेत जु राखिये, पातलवाली प्रीति ।
जीम्यां पाछ फेंक दे, या सन्तन की रीत ।। १०. भावे लंबे केश रख, भावे मुड मुडाव । साहिब से सच्चे रहो, वन्दे से सदभाव ।।
--मानक ११. जैसे--सत्ताधारी पुरुषों की वाणी से सत्ता एवं गृहिणियों
को बाणी से प्रेम झलकता है। उसी प्रकार सन्ता की वाणी से त्याग-बैराग्य-पवित्रता एवं आत्मबल प्रकट होता है और श्रोताओं पर अवश्य प्रभाव पड़ता है।