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सद्विचार
4. सद्विचार नमक है और आचार भोजन है, सद्विचार
सिकोरा है और दानादि क्रियाएं उसमें तेल-बत्ती हैं। २. सद्विचारों की दृढ़ता से शारीरिक विकारों का नाश,
सत्कर्म में प्रेम और दृढ़ विश्वास होता है। सविश्वास की दृढ़ता से मलिनवासनाओं का नाश, क्षमा, दया, घोरज, अनुराग की उत्पत्ति और सग्निदध्यास-प्रभुनाम की स्मृति में दृढ़ प्रयत्न होता है । सन्निदध्यास की दृढ़ता से अशुभकामनाओं का नाश, निष्कामभाव में वृद्धि, नश्वर-भोगों से पूर्ण वैराग्य और सत्तत्त्वों का अनुभव होता है । सततस्वानुभव की दृढ़ता से समर्पणबुद्धि, अहंभाव का सवनाश होता है और सस्थिति की प्राप्ति होती है व स्थूलसंसार का मोह नष्ट होता है । सस्थिति से तमाम दुर्मति नष्ट होकर आत्मा केवल ज्ञानस्वरूप में लीन हो जाती है । यह अवस्था निन्द, गुणातीत, अतर्क व अद्ध त कहलाती है।
-एक वैविक विद्वान